Monday, December 24, 2007

मीले कुछ ज़ख्म ऐसे,
की मैं मरहम लगाना भूल गया|
जीन हातों से सीची थी सीयाई,
उन हातों को मैं दफनाना भूल गया|
भूल गया मैं वो हर शाम,
जब तेरे दर पर सजता हर जाम|
भूल गया यार सब भूल गया,
हर वो नाम जो कभी अपना लगता था|
आज मैं वो सब भूल गया|
तनहाई का आलम कुछ ऐसा छाया
की अपने सामने वाले मैं भूल गया|
इन हातों में शायद ऊपर वाला,
कीस्मत की लकीर बनाना ही भूल गया|

! LOVE WALKIN IN RAIN COZ THEN NOBODY KNOWS THAT I AM CRYIN!!!...