मीले कुछ ज़ख्म ऐसे,
की मैं मरहम लगाना भूल गया|
जीन हातों से सीची थी सीयाई,
उन हातों को मैं दफनाना भूल गया|
भूल गया मैं वो हर शाम,
जब तेरे दर पर सजता हर जाम|
भूल गया यार सब भूल गया,
हर वो नाम जो कभी अपना लगता था|
आज मैं वो सब भूल गया|
तनहाई का आलम कुछ ऐसा छाया
की अपने सामने वाले मैं भूल गया|
इन हातों में शायद ऊपर वाला,
कीस्मत की लकीर बनाना ही भूल गया|
Monday, December 24, 2007
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! LOVE WALKIN IN RAIN COZ THEN NOBODY KNOWS THAT I AM CRYIN!!!...
3 comments:
yar kismat jaisi koi cheez hoti to woh 100 sal ki hogi na, fir abhi to bahut baki hai zindagi, dekh na aage kya hota hai.
cudnt agree more with ganya
sahi hai yaar..
dekhtey hain kya rakha hai aagey hamarey liye!!..
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