Thursday, February 8, 2007

डरता हूँ मैं कहीँ कोई मेरे ज़ख्मो पर वार ना कर जाए ,
दबे हुए मरहम को कही कोई बेनकाब ना कर जाए ,
डरता हूँ मैं उडती पतंग पर कहीँ कोई पथराव ना कर जाए ,
जीवन कि डोर पर कहीँ कोई घाँट ना बन जाए .
डरता हूँ मैं जिन्दगी कि लहरों पर कहीँ कोई रुकावट ना बन जाए ,
आस्मान पर उद्तेय पक्षी को कही किसी कि नज़र ना लग जाए .
डरता हूँ मैं जीवन कि उस सचायी से ,
जिसने बाँध रखा है, उन बंदिशो ने जिन्होने जकड रखा है ,
शायद इस दर के कारन ही जिंदा हूँ मैं ,
शायद इस दर के कारन ही जिंदा हूँ मैं....

2 comments:

Sushant Kunal said...

kya baat hai !

subhan Allah!!
wah wah!!

Anarchy said...

sahi..
finally an original thing ;-)

never mind.. well written dude..
keep on rocking!!!

! LOVE WALKIN IN RAIN COZ THEN NOBODY KNOWS THAT I AM CRYIN!!!...